kmiainfo: Kya hum bhi shirk me mulawwis hain? Kya hum bhi shirk me mulawwis hain?

Kya hum bhi shirk me mulawwis hain?

Kya hum bhi shirk me mulawwis hain? 


                        बिस्मिल्लाह हर्राहमान निर्राहीम,

शिर्क इस्लाम में वो अमल है जो इसके करने वाले को ले डूबता है और कही का नहीं छोड़ता! अक्सर उम्मत ए मुस्लिमा का यह अक़ीदा है कि जो ग़ैर मुस्लिम अपने मज़हब के हिसाब से इबादत करते है, बुतो के आगे सज्दा करते है, चढ़ावा चढ़ाते हैं, मन्नत मांगते हैं और जानवरों की इबादत करते है बस यही शिर्क है। 
लेकिन ख़ुद जो शिर्किया अमल करते हैं उसको ऐन तौहिद मानते हैं। और समझते है जिसने कलमा पढ़ लिया वो शिर्क से बच गया, क्योंकि ना वो मंदिर जाता है और ना ही मूर्तियों की पूजा करता है, जबकि, उम्मत ए मुस्लिमा के अकसर लोग जो शिर्क करते हैं उसकी वजह सिर्फ़ यह है कि उम्मत ए  मुस्लिमा अकसर शिर्क की तारीफ़ नहीं जानती, । उम्मत ए मुस्लिमा के अकसर फर्द शिर्क में मुब्तला हैं उसकी दलील अल्लाह तआला का ये फ़रमान है- 
ईमान वालों में अकसर लोग मुशरिक होते हैं
अल- क़ुरआन ॥ सुरह 12 (युसुफ़) ॥ आयत 106

इस आयत से मालूम पड़ता है की अक्सर कलमा पढ़ कर ईमान लाने वाले भी मुश्रिक है! भले ही बज़ाहिर नज़र ना आते हो लेकिन उनके अमल अंदर ही अंदर उनको मुश्रिक बना देते है! अब सवाल पैदा होता है जब क़ुरआन कहता है ईमान लाने के बावजूद मुश्रिक है तो आख़िर तो आख़िर ये किस तरह का अमल है जो कलमा पढ़े इंसान को भी मुश्रिक बना देता है? इसका ज़िक्र आगे किया जाएगा!

शिर्क के बारे जान लेने से पहले क़ुरआन की कुछ आयत ख़ास ग़ौर ओ फ़िक्र करने वाली है,

जिस गुनाह को अल्लाह तआला और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बड़ा गुनाह बतलाए उससे इन्सान गफ़लत बरते ये बहुत बड़ा ख़सारे का सौदा है। 

शिर्क इतना अज़ीम गुनाह है कि अल्लाह तआला ने इसके बारे में फ़रमाया है- हत्ता के नबियों को भी वज़ाहत फरमा दी, हालाँकि नबी हर गुनाह से पाक होते हैं!

अल्लाह इस गुनाह को नहीं बख़्शेगा कि उसका शरीक बनाया जाए और इसके सिवा और जिस गुनाह को चाहेगा मुआफ कर दे ।
अल-क़ुरआन ॥ सुरह 4 (निसा) ॥ आयत 48

शिर्क कितना अज़ीम गुनाह है इसका अन्दाज़ सिर्फ़ इसी बात से लगाया जा सकता है, कि अल्लाह तआला ने आम इन्सान तो क्या नबीयों तक को भी नसीहत कर दी कि अगर तुमने शिर्क किया तो हम तुम्हें भी नहीं छोड़ेंगे। जैसे कि सुरह अनआम में 17 नबीयों के नाम ज़िक्र करने के बाद फ़रमाया - 

और अगर वो लोग शिर्क करते तो जो अमल वो करते थे सब बेकार हो जाते।
अल-क़ुरआन ॥ सुरह 6 (अनआम) ॥आयत  89

इन्सान को ग़ौर करना चाहिए कि अल्लाह तआला ने जब नबीयों के अमल को बेकार करने के लिए कह दिया जो कि अल्लाह तआला के नेक बन्दे है जिन्हें ख़ुद अल्लाह तआला ने चुना हैं तो हम तुम आप इंसान तो कुछ भी नहीं!

अल्लाह तआला ने एक और एक जगह शिर्क के बारे में फ़रमाया है- 'और (ऐ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तुम्हारी तरफ़ और उन (पैग़म्बरो) कि तरफ़ जो तुमसे पहले हो चुके है वही भेजी गई है कि अगर तुमने शिर्क किया तो तुम्हारे अमल बरबाद हो जाएंगे और तुम ख़सारा उठाने वालो में हो जाओगे 
अल-क़ुरआन ॥ सुरह 39 (ज़ुमुर) ॥ आयत 65 

इन दोनों आयतो पर ग़ौर किया जाए कि अल्लाह तआला ने अपने क़ानून की इन्तहाई बालादस्ती ब्यान कर दी क्योंकि अल्लाह के नबी अल्लाह तआला के साथ शिर्क करे ये नहीं हो सकता लेकिन बन्दों को बतलाने के लिए जो कि बाप दादा और बिरादरी की जकड़ बन्दियों का बहाना बना कर शिर्क में मुब्तिला हैं कि शिर्क अगर नबी से भी हो जाता तो हम उन्हें भी माफ़ नहीं करते फिर तुम ख़ुद क्या हैसियत रखते हो। 

शिर्क इतना संगींन गुनाह है कि इसके बारे में अल्लाह तआला का फ़रमान है- 

और जान रखो कि जो शख़्स अल्लाह के साथ शिर्क करेगा अल्लाह उस पर जन्नत को हराम कर देगा और उसका ठिकाना दोजख़ है और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं। अल-क़ुरआन ॥ सुरह 5 (मायदा) ॥ आयत 72

इस आयत में अल्लाह तआला ने दो टुक फैसला सुना दिया है शिर्क करने वाले के लिए कि उसके उपर जन्नत हराम है उसका ठिकाना जहन्नम है। जो लोग शिर्क में मुबतला हैं और ये कहते हैं कि हमने कलमा पढ़ा है इसलिए हम जन्नत में जायेंगे वो सोचे कि क्या वाक़ई वो सही हैं ? 

इसी सिलसिले में एक बड़ी ही बेहतरीन नसीहत एक बाप ने अपने बेटे हो दी, शायद ही किसी ने दी हो,
एक ये की,
हज़रत लुक़मान ने अपने बेटे को नसीहत करते हुए कहा, बेटा अल्लाह के साथ किसी को शरीक ना करना, यक़ीनन शिर्क तो बड़ा ज़ुल्म अज़ीम है!
अल-क़ुरआन ॥ सुरह 31 (लुक़मान) ॥ आयत 13

और दूसरी 
जब याक़ूब अलै० ने वफात से पहले अपने बेटों से पूछा, तुम मेरे (वफात के) बाद किसकी इबादत करोगे?
तो उन्होंने कहा, हम आपके माबूद और आपके बाप दादा इब्राहिम और इस्माईल और इसहाक़ अलै० के माबूद की इबादत करेंगे! जो माबूद यकता है! और हम सब इसी के फरमाबरदार रहेंगे!

ये दोनो बड़ी ही अज़ीमतर शख़्सियत है उनको बख़ूबी मालूम था की शिर्क क्या है और इसकी सज़ा क्या है, उनको ईल्म था किसी दूसरे का दीन नहीं बल्कि अल्लाह का दीन ही सच्चा दीन है!
ये दो ऐसी नसीहतें है जिसको हर माँ और बाप को चाहिए अपनी औलाद को दे, पैसा ना दे पाए, अच्छे कपड़े अच्छी तालीम अच्छा मुआशरा अच्छे हालात ने दे पाए लेकिन ये बातें ज़रूर पक्के अहद के साथ दे, और उनको बात बात पर अल्लाह के दीन की तालीमात की और बुलाता रहे, क्योंकि अक्सर ऐसा ही होता है कि लोग अपने बाप दादाओं के दीन को ही सच्चा दीन समझते है, और इसी की पैरवी करते है! और गुमराही का अक्सर शरफ बाप दादाओं के दीन ही है, जो झूठे मक्कारों ने बनाए और अपनी औलाद को भी उसी पर आमादा रखा,
क़ुरआन में इसके बारे अल्लाह फ़रमाता है,
और जब मुश्रिको से कहा जाता है, कि अल्लाह की उतारी हिदायत पर चलो तो कहते है हम तो उसी पर चलेंगे जिस पर हमने अपने बाप दादाओं को पाया, अगर चे उनके बाप दादा ना कुछ अक़्ल रखते हो, ना हिदायत
अल-क़ुरआन ॥ सुरह 2(बक़रा) ॥ आयत 170

ये चंद नुक़्ते ऐसे है जिसको हर एक को अपने ज़हन में घर कर लेने चाहिए और वक़्त वक़्त पर अपने घर वालों को इसकी ताकीद करते रहे! शिर्क कितना भारी जुल्म है इस का अंदाज़ा ऊपर बयान की गयी तमाम आयतों से लगाया जा सकता है! शिर्क क्या है और इसकी क़िस्मों के बारे इंशा अल्लाह आइन्दा पोस्ट में तफसीली ज़िक्र किया जाएगा!

दुआओ का तालिब

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